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पुणे। पुणे कैंटोनमेंट विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनौतीपूर्ण और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा करते समय काफी समय लिया, जिससे मौजूदा विधायक सुनील कांबळे को अपनी छवि सुधारने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री रमेश बागवे पिछली बार महज 5,000 मतों से मिली हार का बदला लेने की तैयारी में जुटे हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस क्षेत्र में कुल 20 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिससे वोटों का बंटवारा होना तय है। खासतौर पर मुस्लिम मतदाता इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

भाजपा और कांग्रेस का इतिहास

2009 में रमेश बागवे ने शिवसेना के उम्मीदवार सदानंद शेट्टी को 37,000 मतों के बड़े अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी। लेकिन 2014 में भाजपा की लहर ने उन्हें पराजित कर दिया, और भाजपा के दिलीप कांबळे ने जीत हासिल की। 2019 के चुनाव में भाजपा ने दिलीप कांबळे की बजाय उनके भाई सुनील कांबळे को टिकट दिया, जो बागवे को कड़े मुकाबले में हराने में सफल रहे।

सुनील कांबळे के लिए छवि सुधारने की चुनौती

पिछले पांच वर्षों में सुनील कांबळे कई विवादों के कारण चर्चा में रहे। ससून अस्पताल में तृतीयपंथियों के लिए विशेष वार्ड के उद्घाटन के दौरान उनके नाम का उल्लेख न होने से वे नाराज हो गए थे। इसके अलावा, एक पुलिसकर्मी को थप्पड़ मारने और एक वरिष्ठ महिला अधिकारी को अपशब्द कहने की घटनाओं ने उनकी छवि को धूमिल किया। भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी घोषित करने में देरी की, जिससे उनकी लोकप्रियता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस की रणनीति और मुस्लिम मतदाताओं पर ध्यान

इस क्षेत्र में कुल 2,95,382 मतदाता हैं, जिनमें लगभग 58,000 मुस्लिम हैं। मुस्लिम मतदाता पारंपरिक रूप से कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं, और बागवे इस बार उनके समर्थन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने “बेरोजगारी के मुद्दों” को उभारकर और मुस्लिम समुदाय के बीच सक्रिय रहकर समर्थन जुटाने की कोशिश की है।

वोटों का बंटवारा और जातीय समीकरण

इस चुनाव में वंचित बहुजन आघाड़ी के निलेश आल्हाट जैसे अन्य उम्मीदवारों के मैदान में होने से अनुसूचित जाति के वोट बंट सकते हैं। इसके चलते मुस्लिम वोट निर्णायक बन सकते हैं।

चुनाव प्रचार की दिशा

सुनील कांबळे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और महायुती सरकार के विकास कार्यों को अपना प्रमुख एजेंडा बना रहे हैं। वहीं, बागवे ने पिछले कार्यकाल में अपने विधायक और पार्षद के रूप में किए गए कार्यों को मतदाताओं के सामने रखा है।

इस बार का चुनाव भाजपा के लिए जहां चुनौतीपूर्ण है, वहीं कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है।